ऐसे ही नहीं दी गई है महेंद्रनाथ पांडेय को उत्तर प्रदेश बीजेपी की कमान, इसके पीछे हो सकती है एक रणनीति
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियर के दम पर ओबीसी और गैर जाटव के समीकरण के साथ प्रचंड बहुमत से जीती बीजेपी अब लगता है फिर से अपने पुराने 'कोर वोट बैंक' की ओर लौटना शुरू हो गई है. मोदी मंत्रिमंडल से हटाकर महेंद्र पांडेय को प्रदेश का अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे अब कई कारण साफ नजर आ रहे हैं.. दरअसल योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही बड़ी मात्रा में ब्राह्णण नाराज हो गए. इसकी बड़ी वजह यह है कि गोरखपुर में योगी और हरीश शंकर तिवारी के बीच अदावत को ब्राह्णण बनाम ठाकुर के नजरिए से देखा जाता रहा है. दूसरी ओर लोकसभा चुनाव से ही इस बात का संकेत मिलने शुरू हो गए थे कि बीजेपी अब अगड़ों को छोड़कर ओबीसी को अपना आधार वोट बैंक बनाना चाहती है. इसकी एक वजह पीएम मोदी का ओबीसी समुदाय से होना भी माना गया. वहीं इस बात को उस समय भी बल मिला जब उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले लक्ष्मीशंकर बाजपेई हटाकर ओबीसी से ताल्लुक रखने वाले केपी मौर्या को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया गया. लेकिन अब बीजेपी की नजर 2019 के लोकसभा चुनाव पर है. पार्टी ने ओबीसी और गैर जाटव वोटबैंक पर अच्छी-खासी घुसपैठ कर ली है. अब वह प्रदेश की अगड़ी जातियों जो कि 22 फीसदी हैं जिसमें से सबसे ज्यादा ब्राह्णण हैं, उनकी ओर ध्यान देना चाहती है.
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